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राजस्थान के कुंभलगढ़ |
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महाराणा प्रताप की कद {लम्बाई} लगभग साढ़े 7 फुट {फ़ीट} के थे। महाराणा प्रताप की वजन लगभग 110 किलो ग्राम के थे।
महाराणा प्रताप के कवछ की वजन लगभग 72 किलोग्राम का था। महाराणा प्रताप की भले का वजन 50 किलोग्राम था।
महाराणा प्रताप जब युद्ध करने के लिए निकलते थे। तो वे अपने 72 किलोग्राम के कवच और 80 किलो के भले वो अन्य 2 { दो } तलवार लेकर युद्ध के लिए निकलते थे। इन सभी वस्तुओ की वजन लगभग 200 किलोग्राम तक होती थी।
महाराणा प्रताप के कवच , भाला , और तलवार वे अन्य वस्तु आज भी उदयपुर के राजघराने के संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है।
महाराणा प्रताप की पत्निया और उनके पुत्र
महारानी अजबदे पवार - अमर सिंह और भगवानदास
सोलनखिनीपुर बाई - साशा और गोपाल
अमरबाई राठौर - नत्था
शाहमतीबाई हाडा - पूरा
अलमदेबाई चौहान - जसवंत सिंह
रत्नावती बाई परमार - माल , गज , किलंगु
फूलबाई राठौर - चंदा और शिखा
जसोबाई चौहान - कल्याण दस
लखाबाई - राय भाना
चंपाबाई जंथी - कल्ला ,सनवालदस और दुर्जन सिंह
खिचार आशाबाई - हत्थी और रामसिंह
महाराणा प्रताप और चेतक के बारे में
महाराणा प्रताप के विश्वसनीय घोड़े का नाम चेतक था। चेतक की लम्बाई 11 फ़ीट थी। चेतक पर नीले रंग का निशान निशान था। इसलिए महाराणा प्रताप को "नीले घोड़े रा असवार " कहा जाता है। जिसका मतलब नील घोड़े की सवारी करने वाला होता है।
हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान मानसिंह के साथ युद्ध करते हुए महाराणा प्रताप और उनका घोड़ा घायल हो गया था। जिसके बाद घायल चेतक ने महाराणा प्रताप के साथ 26 फ़ीट चौड़ी नदी को पर कर महाराणा प्रताप की जान बचाई। जिसके बाद घायल चेतक की मृत्यु हो गई। चेतक ने अपनी जान देकर भी अपने मालिक {महाराणा प्रताप} की जान बचाई। महराणा प्रताप चेतक के मृत्यु पर बहुत रोये थे।
चेतक के मृत्यु के बाद ही शक्ति सिंह को अपने गलती का एहसास हुआ जिसके बाद उन्होंने अपने घोड़े को महाराणा प्रताप को दे दीये।
महाराणा प्रताप की गुरु एवं शिक्षा ?
महाराणा प्रताप के गुरु के नाम आचर्य राघवेंद्र थे। जिन्होंने महाराणा प्रताप को शिक्षा देकर उन्हें योद्धा कूटनीतिज्ञ और धर्म रक्षक बनाये। महाराणा प्रताप को उनके गुरु आचर्य राघवेंद्र ने उन्हें राजपुती धर्म अनुसार शिक्षा दिए।
महाराणा प्रताप की मृत्यु कब कैसे हुई
महाराणा प्रताप की मृत्यु 19 जनवरी 1597 ईं० में अपनी नई राजधानी चावंड में हुई। महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर को भी बहूत दुःख हुआ। अकबर महाराणा प्रताप की वीरता , दयालुता एवं गुणों का काफी प्रशंशक था। महाराणा प्रताप की मृत्यु के बाद उनका स्मारक स्थल ( समाधी ) राजस्थान के उदयपुर में स्थित है। मृत्यु के समय उनकी आयु 56 वर्ष थी।
महाराणा प्रताप की विरता आज भी भारत एवं दुनिया भर के लोगो को प्रेरित करती है। और उन्हें साहस , देशभक्ति और कर्त्तव्य के प्रति निस्वार्थ समर्पण का प्रतिक माना जाता है।
हल्दी घाटी का युद्ध
हल्दी घाटी का युद्ध 18 जून 1576 ई में मेवाड़ एवं मुगलो के मध्य {बीच} में हुआ था। इस युद्ध में मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया था। एवं भील सेना के नेतृत्व सरदार - पानवार के ठाकुर राणा पूंजी सोलंकी ने किए थे। इस युद्ध के दौरान एक मुस्लिम शासक हाकिम खा सूरी ने महाराणा प्रताप के तरफ से युद्ध लड़ा वे पहले ऐसे मुस्लिम शासक { राजा } थे।
लड़ाई का स्थल ➡ लड़ाई राजस्थान के गोगुन्दा पास हल्दीघाटी में एक संकरा पहाड़ी दरा था। युद्ध भूमि में महाराणा प्रताप ने 3000 घोड़सवारो और 400 भील धनुधारियो के बल को मैदान में उतारे। इस युद्ध में मुगलो का नेतृत्व अजमेर के " राजा मान सिंह " ने किया था। राजा मान सिंह ने लगभग 5,000 से 10,000 लोगो की सेना की कमान संभाली थी। तीन घंटो से अधिक समय तक भयंकर युद्ध चला।
इस युद्ध में मुग़ल सेना का नेतृत्व मान सिंह कर रहे थे एवं आसफ खा ने किया। इस भयंकर युद्ध का आँखो देखा भयंकर युद्ध का वर्णन अब्दुल कादिर बदायूनी ने किया। इस युद्ध को आसफ खा ने अप्रत्यक्ष रूप से जेहाद की संज्ञा दी। इस युद्ध में बिन्दा के झालामान ने अपने प्राणो का बलिदान करके महाराण प्राप्त की जीवन की रक्षा की।
वही ग्वालियर नरेश , " राजा रामशाह " ने होने तीन पुत्रो { "कुँवर शालिवाहन " / " कुँवर भवानी सिंह " / "कुँवर प्रताप सिंह "} और पौत्र बलभद्र सिंह एवं सैकड़ो वीर तोमर राजपूत योद्धाओ समेत चिरनिंद्रा में सो गए।
शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को " मान सिंह " ने अपने प्राणो की आहुति देकर महाराणा प्रताप को यूद्ध भूमि छोड़ने के लिए बोले। एवं शक्ति सिंह ने अपनाा घोड़ा { घोटकः } देकर महाराणा प्रताप को बचाया
इस युद्ध में महाराणा प्रताप का "चेतक" {घोटकः} की मृत्यु।
युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इस युद्ध में 17000 लोग {सिपाही} मारे गए थे।
मेवाड़ जितने के लिए अकबर ने हर एक प्रयास किया।
हार के बावजूद , महाराणा प्रताप की बहादुरी और लचीलेपन राजपूतो भावी पीढ़ीयो को अपने स्वतंत्रता सम्मान के लिए लड़ते रहने के लिए प्रेरित किया। आज महाराणा प्रताप को एक एक महान नायक और राजपूत वीरता और गौरव के प्रतिक के रूप में याद जाता है।
मेवाड़ के राजवंश के शासक कौन थे और कब थे।
- राणा हम्मीर सिंह ↔ 1326 से 1364
- राणा श्रेत्र सिंह ↔ 1364 से 1382
- राणा लखा ↔ 1382 से 1421
- राणा मोकल ↔ 1421 से 1423
- राणा कुम्भ ↔ 1433 से 1468
- उदयसिंह प्रथम ↔ 1468 से 1473
- राणा रायमल ↔ 1473 से 1508
- राणा सागा ↔ 1508 से 1528
- रतन सिंह द्वितीय ↔ 1528 से 1531
- राणा विक्रमआदित्य सिंह ↔ 1531 से 1536
- बनवीर सिंह ↔ 1536 से 1540
- उदयसिंह द्वितीय ↔ 1540 से 1572
- महाराणा प्रताप ↔ 1572 से 1597
- अमर सिंह प्रथम ↔ 1597 से 1620
- कारण सिंह द्वितीय ↔ 1620 से 1628
- जगत सिंह प्रथम ↔ 1628 से 1652
- राज सिंह प्रथम ↔ 1652 से 1680
- जय सिंह ↔ 1680 से 1698
- अमर सिंह द्वितीय ↔ 1698 से 1710
- संग्राम सिंह द्वितिय ↔ 1710 से 1734
- जगत सिंह द्वितिय ↔ 1734 से 1751
- प्रताप सिंह द्वितीय ↔ 1751 से 1754
- राज सिंह द्वितीय ↔ 1754 से 1762
- अरी सिंह द्वितीय ↔ 1762 से 1772
- हम्मीर सिंह द्वितीय ↔ 1772 से 1778
- भीम सिंह ↔ 1778 से 1828
- जवान सिंह ↔ 1828 से 1838
- सरदार सिंह ↔ 1838 से 1842
- स्वरूप सिंह ↔ 1842 से 1861
- शम्भू सिंह ↔ 1861 से 1874
- उदयपुर के सज्जन सिंह ↔ 1874 से 1884
- फतेह सिंह ↔ 1884 से 1930
- भूपाल सिंह ↔ 1930 से 1948
महाराणा प्रताप की जीवन से जुड़ी कुछ Q & A
महाराणा प्रताप सिंह कौन थे ?
मेवाड़ में सिसोदिया वंश के राजा थे।
महाराणा प्रताप सिंह का जन्म कब और कहा हुआ था ?
महाराणा प्रताप का जन्म 09 मई 1540 में राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में महाराणा उदय सिंह और उनकी रानी जयवंता कवर के घर हुआ था।
महाराण प्रताप की कितनी पत्निया थी ?
महाराणा प्रताप की 11 पत्निया थी
महाराणा प्रताप के कितने संतान थे ?
महाराण प्रताप की कुल 22 संताने थी। जिसने 17 पुत्र और 5 पुत्रिया थी
महाराणा प्रताप की पहली पटाने का नाम क्या था ?
महाराणा प्रताप के पहली पत्नी का नाम अजबंदे पंवार था।
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