महान सम्राट कृष्णदेव राय की संपूर्ण जीवनी परिचय | Krishna Dev Rai Biography in Hindi


 

 कृष्णदेव राय की परिचय 

 पूरा नाम     

 कृष्णा देव राय     

जन्म तिथि  

16 फ़रवरी 1471  

जन्म स्थान  

हंपी कर्नाटक  

 पिताजी का नाम 

तुलुव नरस नायक  

माताजी का नाम  

 नगला देवी 

 पत्नी का नाम 

 अनपूर्ण देवी ,चित्रा देवी , तिरुमला देवी 

  भाई का नाम 

 वीर नरसिंह 

 बेटा का नाम 

 तिरुमला राय 

 शासन काल 

 1509 से 1529 तक 

 मृत्यु 

 1529 हम्पी, कर्नाटक 

 शासन काल 

 1509 से 1525 

 कृष्ण देव राय का जीवनी परिचय 

श्री कृष्णदेव राय एक महान राजा एवं एक शक्तिशाली योद्धा भी थे। इनका जन्म 16 फरबरी 1471 में हंपी कर्नाटक में हुआ था। ( " ये बचपन से ही काफी कुशाग्रह बुद्धि के बालक थे। " ) इनके माताजी का नाम नागला देवी था। तथा  इनके पिता जी का नाम तुलुव नरसा थे ,जो बटों के सरदार थे। सालुव वंश के दूसरे और अंतिम राजा शासक इम्म्मडि नरसिंह का संरक्षण बनाया गया था। जिसके बाद कृष्णदेव राय के पिता जी ने इम्म्मडि को कैद कर सम्पूर्ण भारत में अपना अधिकार कर लिये थे। जिसके बाद उनके पिताजी ने विजयनगर की भागडोर को अपने हाथ {अधिकार } में सन 1492  ले लिए है।   जिसके बाद 1503 ईस्वी में उनके पिताजी की मृत्यु होगी थी। 

कृष्णदेव राय का राज्यभिषेक 

कृष्णदेव राय से पहले राज्यगद्दी पर उनके बड़े भाई बिराजमान थे।  उनके बड़े भाई का नाम नरसिंह था। जिन्होंने सन 1505 से 1509 तक उस राज्य का बाग़डोर संभाली थी। परन्तु कुछ लोगो का ये भी मानना है की उन्होंने 1510 तक राज्य जिजयनगर के गद्दी पर विराजमान थे।  परन्तु कुछ समय पच्यात उनकी तबियत ख़राब हो गई। जिसके बाद उनकी मृत्यु 08 अगस्त 1509 को 40वर्ष की आयु में हो गई। जिसके बाद कृष्णदेव राय को राज्य विजयनगर साम्राज्य के सीघाषण पर राजतिलक किया गया जिसके बाद कृष्णदेव राय इस राज्य का राजा बन गए। 


कृष्णदेव राय के प्रमुख सलाहकार कौन था ?

राजा कृष्णदेव के दरबार का सबसे प्रमुख और बुद्धिमान दरबारी तेनालीराम था। जिनका वास्तविक नाम रामलिंगम था , रामलिंगम का नाम तेनाली राम इस लिए पड़ा क्योकि वो तेनाली ग्राम का रहने वाले थे। रामलिंगम की बुद्धि का चर्चे दूर - दूर तक फ़ैल गया , ये बात जब राजा कृष्णदेव  राय को पता चली जिसके बाद रामलिंगम की बुद्धि की परीक्षा राजा कृष्णदेव राय के दरबार में  बुलाया गया। जिसके बाद रामलिंगम की बुद्धि की परीक्षा हुई। जिसके बाद कृष्ण देव राय ने उन्हें अपने राज्य में रामलिंगम को सलाहकार के रूप में  रख लिए जिसके बाद उनका नाम तेनालीराम रखा गया ! 



कृष्णदेव राय का शक्तिशाली सेना 

राजा कृष्णदेव राय के शासक एवं नेतृत्व में 4000 पैदल ,घुड़सवार 6000 ,300 हाथी भी थे। जब युद्ध हुआ तो ये सेना कृष्णा  नदी तक पहुंच  गई थी। 19 मई 1520 को  शुरू हुआ जिसके बाद राजा आदिलशाही सेना पराजय की सामना करना पड़ा।  उसके बाद आदिलशाही के सेना ने युद्ध में तोपखाना आगे किये और विजयनगर की  सेना को  पीछे हटना पड़ा 

कृष्ण देव राय जी के महान कार्य 

श्री कृष्णदेव राय जी ईतिहास एक बहुत महान राजा थे। जिसकी तुलना अन्य राजाओ से भी नहीं की जा शक्ति है।  उन्होंने अपने जीवन काल {शासक} के समय उन्होंने अपने  राज्य को कला ,साहित्य ईत्यादी को बढ़ावा दिये। उन्होंने अपने राज्य के मंदिर और मठ जो पूरी तरह बर्बाद थे , उन्हें फिर से  बनवाए ,इत्यादि अन्य महत्पूर्ण कार्य किए। 


कृष्णदेव राय जी ने शास्त्रों एवं शस्त्रों की शिक्षा ?

कृष्णदेव राय जी ने कला और साहित्य को भी प्रोत्साहित किये।  ये तेलुगु साहित्य के महान विद्वान राजा थे। इन्होने तेलुगु के विख्यात {प्रसिद्ध} ग्रन्थ " अमुक्त माल्यद " या विश्वुवितीय की रचना की।  संस्कृत भाषा में कृष्णदेव राय ने एक रचना किये उस रचना का नाम ' जाम्ब्वती कल्याण ' को  भी रचना किये थे ,

इसके पश्च्यात उन्होंने संस्कृत में अन्य और रचना भी लिखे 

  1. परिणय 
  2. सकलकथासार - संग्रहम 
  3. मदारसाचरित्र 
  4. सत्यवधू - परिणय   


कृष्णदेव राय - तालिकोट का युद्ध 

एक समय ऐसा भी आया जब कई मुग़ल सुल्तानो ने मिलकर कृष्णदेव राय के विरुद्ध युद्ध बोल दिया  यह युद्ध दीवानी नमक स्थान पर हुआ। नूरी खान ख्वाजा -ए - जहा , मालिक अहमद बाहरी , आदिलशाह , क़ुतुब उल मुल्क , तमादुल मुल्क , दस्तूरी ममालिक , मिर्ज़ा लुत्फुल्लाह , इन सभी मुग़ल सुल्तानों ने  कृष्णदेव राय पर जिहाद बोल दिया। 

इस युद्ध में बीदर का सुलतान महमूद साह द्वितीय घायल होकर घोड़े से गिर गए। जिसके बाद सुल्तान महमूद साह द्वितीय के सेनापति रामराज तिम्मा ने सुल्तान महमूद साह को बचाया और ,मिर्ज़ा लुत्फुल्लाह के खेमे ( स्थान ) पर पहुंचाया था , इसी युद्ध के दौरान आदिल खान मारा गया , जिसके बाद सुल्तानों को भारी क्षति उठानी पड़ी। जिसके बाद सभी मुस्लिम रियासते राजा कृष्णदेव राय विरुद्ध तालिकोट के लड़ाई में पुनः सभी मुगलिया संगठित  गया।  


कृष्णदेव राय - रायचूर की विजय 

विभिन युद्धो  में लगातार जीत हाशिल करने के बाद कृष्णदेव राय अत्यधिक लोक प्रिय नायक बन गये अपने राज्य के। जिसके बाद कृष्णदेव राय को उनके राज्य के जनता उन्हें अवतार कहने लगे ,ऐसे ही दिन बदले साल बदले जिसके बाद उनके पराक्रम की कहानियाँ प्रचलित हो गई। जिसके बाद कृष्णदेव राय को महान सेनानायक रामचूर विजय के द्वारा बनाया गया। एवं  रायचूर के किले के लिया भारत का सबसे कठिन और बहुत विशाल युद्ध हुआ।  - युद्ध से पहले ही कृष्णदेव राय ने वीर नरसिंह राय से मिले और उन्हे बचन दिए की वे रायचूर का किया जीतकर विजयनगर साम्राज्य से मिला लेंगे परन्तु ये अवसर उनके लिए असफल रहा। 


कृष्णदेव राय  मृत्यु कब और कैसे हुई ?

कृष्णदेव राय जी इतिहस के सबसे शक्तिशाली राजाओ में से एक थे। इनकी मृत्यु सन 1529 में हो गई। इनकी  मृत्यु का कारण ये भी था की उनको एक अज्ञात बीमारी हो गया था।  इसी बीच उनके बेटे ने राजनितिक प्रचंड रचा जिस वजह से उनकी मृत्यु हो गई। 


कृष्णदेव राय जी के जीवनी से जुड़ी कुछ महत्पूर्ण प्रश्न जो अक्सर परीक्षा में पूछे जाते है। 


कृष्णदेव राय की मृत्यु कैसे हुई ?

तिरुमल राय जो " कृष्णदेव राय " के पुत्र थे। इन्होने एक राजनितिक सडयंत्र रचा जिसके तहत उनकी हत्या कर दी गई। जिसके बाद कृष्णदेव राय  मृत्यु हो गई 


कृष्णदेव राय किस वंश थे ?

कृष्ण कृष्णदेव राय तुलव तुलव वंश के वंशज थे। 


कृष्ण देव राय किस राज्य के राजा थे ?

कृष्णदेव राय विजयनगर के राजा थे। 


कृष्णदेव राइ किस भाषा में बात करते थे ?

कृष्ण देव राय तेलगू और कन्नड़ भाषाओ में बात करते थे। 




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