महाराजा सूरजमल सिंह जी की जीवनी पढ़े |
सूरजमल की जीवनी |
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महाराजा सूरजमल सिंह जी की प्रारंभिक जीवनी ?
राजा सूरजमल का वास्तविक नाम सुजान सिंह था इनका जन्म 13 फ़रवरी 1707 को भरतपुर नामक राज्य में हुआ था। ये एक हिंदू जाट परिवार से थे। इनके पिताजी का नाम " बदन सिंह " था। इनकी माताजी का नाम महारानी " देवकी " थी
महाराजा सूरजमल का महारानी किशोरी देवी से विवाह ?
महारानी किशोरी जी का जन्म होडल के चौधरी काशी राम सिंह के घर हुआ। जिसके बाद पिता ने पुत्री की देखभाल। एक योद्धा के रूम में किये जिससे किशोरी जी युद्धकला में निपूर्ण हुए।
विवाह - एक दिन महाराजा सूरजमल किसी कारण वश अपने हाथी पर बैठ कर अपने सैनिको के साथ होडल से गुजर रहे थे। तभी उनके सामने एक रोचक घटना हुई। जिसके बाद सैनिको ने किशोरी जी को हटने को कहा परन्तु किशोरी जी सैनिक को अपने बुद्धि ,साहसी ,चतुराई से परिपूर्ण से उन्होंने सैनिको को दूसरे रस्ते जाने को कहे। ....
उनकी वीरता और साहसी को देख कर महाराजा सूरजमल ने किशोरी जी से विवाह करने का मन बना लिए। जिसके बाद उन्होंने किशोरी जी से विवाह करने के लिए उनके पिता जी चौधरी काशीराम और होडल ग्राम के ग्रामवासी को सन्देश दिए। जिसके बाद महाराजा सूरजमल ग्राम पंचायत में उपस्थित ग्रामीणों के समीप अपने विवाह का प्रस्ताव रखे। जिसके बाद ग्रामीण के मर्जी से महाराजा सूरजमल और किशोरी जी का विवाह करा दिया गया। ..
महारानी किशोरी की वीरता,साहस, सूजभुज और बुद्धि से हमेशा अजय रखा था।
( महाराजा सूरजमल ने छतरिया मंदिर और तालाब का निर्माण करवाए , यहाँ हर वर्ष मेला लगता है। यहाँ दूर दूर से लोग आज भी आते है। )
( महाराजा सूरजमल ने संन 1747 में अरशद खान को मार कर कौल के युद्ध में अलीगढ़ को जीते थे ,महाराजा सूरजमल युवा अवस्ता में धाक जमाई थी। )
महाराजा सूरजमल के कितने संतान थे ?
महाराजा सूरजमल के पाँच संतान थे।
01. जवाहर सिंह
02. नाहर सिंह
03. नवल सिंह
04. रंजीत सिंह
भरतपुर रियासत का विस्तार ?
महाराज सूरजमल भरतपुर के संथापक है। महाराजा सूरजमल ने भरतपुर का धौलपुर , आगरा , मैनपुरी ,अलीगढ़ ,हाथरस ,इटवा , मेरठ ,रोहतक,मेवात ,रेवाड़ी ,गुड़गांव और मथुरा तक कर दिया था।
लौहागढ़ किलो को आज तक कोई नहीं भेद पाया ?
हिंदुस्तान राजस्थान के भरतपुर में स्थित लौहागढ़ किलो को देश का एकमात्र अजेय दुर्ग कहा जाता है। हिंदुस्तान के किलो को आज तक कोई नहीं भेद पाया। अंग्रजो ने 13 बार अपनी तोपों से आक्रमण किया परन्तु वे अंग्रेज असफल रहे। किले का निर्माण महाराज सूरजमल ने ही करवाए थे। इस किलो को बनवाने में एक विशेष युक्ति का उपयोग किया गया था। जिससे इस पर किसी भी तोप का असर नहीं पड़े। यही कारण था की जब अंग्रेजो ने इस किले पर आक्रमण किए तोपे चलवाये फिर भी इस किले का कुछ नुकसान नहीं हुआ। ...
महाराजा सूरजमल की उदारता ?
सन 14 जनवरी 1761ई. में जब पानीपत की तीसरा युद्ध मराठा और अहमदशाह अब्दाली के बीच हे हुई। इस युद्ध के दौरान मराठो के एक लाख सैनिक में से आधे से ज्यादा सैनिक युद्ध में शहीद हो चुके थे। युद्ध के दौरान मराठो के पास को इलाके का भी भेद नहीं था और नहीं राशन पूरा था। जिस वजह से सैनिक युद्ध भी सही से नही लड़ पा रहे थे।
सदाशिव राव महाराजा सूरजमल से छोटी बात पर तकरार नहीं करते और उन्हे इस युद्ध में साझीदारी बनाते तो आज हिंदुस्तान /भारत की तस्वीर कुछ और ही होती। इतना तकरार होने के बाद भी महाराजा सूरजमल ने फिर भी दोस्ती का हक़ अदा किये। युद्ध समाप्त होने के बाद के लगभग तीस से चालिश हज़ार मराठा सैनिक युद्ध भूमि से वापस अपने राज्य लौट रहे थे। इस दौरान मराठा सैनिक ' सूरजमल ' के राज्य (इलाका ) में पहुचे इस दौरान मराठो सैनिक का ' हाल ' बहुत ख़राब हो चूका था। वे सभी सैनिक जख्मी थे और भूखे - प्यासे थे। ये सैनिक मरने के कगार पर थे। ऊपर से सर्दी का मौशम था। सर्दी के कारन भी बहुत सैनिक मर गए , क्योकि जितने भी सैनिक थे उनके पास ऊनी कपड़ा (वस्त्र ) नहीं जिस कारन सैनिक लोग भी सर्दी मौषम से मर गई।
जो मराठा सैनिक बचे थे। उन सैनिक को राजसूराज मल 06 ( छ: ) महीनो तक अपने राज्य में रखे और उन मराठा सैनिक की इलाज करवाए , भोजन दिए , कपड़े दिए एवं सेवाएं भी की बेवस्ता किये। और महारानी महारानी किशोरी ने भी प्रजा ( जनता ) से अपील ( प्राथना ) किये की वे थोड़ा थोड़ा अन्य उन मराठों सैनिक के लिए दे। जिससे वे मराठा सैनिक का पेट भर सके। ...
मराठो के देखभाल में लगभग 20 लाख रूपये उनकी सेवा ( भोजन - पानी ) में ख़तम हुए। जब मराठा सैनिक ठीक हो गए। और वे अपने राज्य जाने का निर्णय लिए - तो राजा के तरफ से मराठा सैनिक को जाते समय हर एक पुरुष को " एक रूपये " एक सेर अनाज , और कुछ कपड़े दिए। जिससे जो मराठा सैनिक अपने राज्य लौट रहे थे। उन्हें रस्ते में किसी भी प्रकार के ' कस्ट ' न हो। ....
जितने भी मराठा सैनिक थे। बे युद्ध के होने के पूर्व अपने साथ अपनी पत्नियों को भी साथ लाये थे। परन्तु मराठा सैनिक ने युद्ध में जाने से पहले उन्हे। " हरयाणा " के गांव में छोड़ गए थे। ... > परन्तु लौटते समय जितने भी मराठा सैनिक कुशल थे। वे अपने पत्निओ के साथ हरयाणा गाँवो को छोर कर चले गए। और जो सैनिक की युद्ध मे अपनी " प्राण " गवाए उनकी पत्निया विधवा बन गई और वे हरयाणा के संस्कृति में रम गई.
महाराजा सूरजमल की मृत्यु कब और कैसे हुई ?
महाराजा सूरजमल की मृत्यु 25 दिसंबर 1763 ई० 55 वर्ष की आयु में हुई। जब वे हिंडन नदी के किनारे युद्ध कर रहे थे। युद्ध के दौरान उन्हें वीरगति प्राप्त हुई।
महाराजा सूरजमल सिंह जी की जीवनी से परीक्षा में पूछे गए कुछ महत्पूर्ण ( प्रश्न )सवाल :-
- महाराजा सूरजमल सिंह का वास्तविक नाम ;- राजा सूरजमल
- महाराजा सूरजमल सिंह का जन्म कब और कहा हुआ था ;- 13 फ़रवरी 1707 , भरतपुर राजस्थान , भारत
- महाराजा सूरजमल सिंह के पिताजी का नाम क्या था ;- बदन सिंह
- महाराजा सूरजमल सिंह के माताजी का नाम क्या था ;- महारानी देवकी
- महाराजा सूरजमल जी के पत्नी का नाम क्या था ;- कल्याणी रानी ,रानी हंसिया , रानी खाट्टू , रानी गौरी , गंगा रानी
- महाराजा सूरजमल सिंह के संतान का नाम क्या था ;- जवाहर सिंह , नाहर सिंह , रतन सिंह , नवल सिंह , रंजीत सिंह।
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